नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Act) के पक्ष और विरोध में जोरदार प्रदर्शन, धरने और रैलियां निकली हैं पिछले एक से दो महीने में, लेकिन सभी दो से चार दिन ही चली। लेकिन जब ये (Shaheen Bagh
Protest) शुरू हुआ था, तब जामिया (Jamia Millia Islamia) में विरोध प्रदर्शन अपने चरम पर था और शाहीन बाग में कुछ महिलाएं खामोशी के साथ धरने पर आकर बैठ गईं | धरने की शुरुआत 14 दिसम्बर 2019 को 10-15 लोकल औरतो से हुआ । बाद मैं ये संख्या रविवार तक 1,00,000 हो गई| फिर क्या था, दिन गुजरे, हफ्ते गुजरे लेकिन शाहीन बाग में बैठी महिलाएं का जोश कम नहीं हुआ। आलम ये है कि अब देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय
मीडिया में शाहीन बाग की चर्चा जोर-शोर से हो रही है।
हैरान करने वाली बात ये कि आखिर इतने सुचारू ढंग से यहां व्यवस्था कैसे चल रही है? कौन लोग हैं इसके पीछे जिन्होंने
सड़क पर अव्यवस्था
के बीच एक जीती जागती सांस लेती व्यवस्था को जन्म दिया है?
यहां घटनास्थल के आस पास कई सारे राष्ट्रीय झंडे सुचारू रूप से लटके देखे जा सकते थे। बैरिकेड के बगल में हैरान करने वाली बात ये है की यहां हमेशा तीन-चार वालंटियर खड़े रहते है जिनका काम व्यवस्था बनाएं रखना है। यहां कोई गलत एलिमेंट न आ जाए इसलिए ये हल्की जांच पड़ताल करते हैं। बीते दिनों में एक नहीं कई बार ऐसा हुआ है कि धरने में अव्यवस्था फैलाने के मकसद से कुछ गलत लोगों ने इस रास्ते से घुसने की कोशिश की, लेकिन वालंटियर्स की सतर्कता के चलते ऐसा नहीं हो सका। ये वालंटियर्स यहीं से लोकल आम लोग हैं और ये बस चाहते हैं कि धरना शांति से चले। लोगो को अव्यवस्थित दिखने वाला यह एक व्यवस्थित रूप है।
यहां महिला वॉलंटियर्स ने मेडिकल हेल्प मुहैया कराने के तौर पर हमेशा तैनात रहती है। धरनास्थल के सामने आजाद, अंबेडकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, अशफाक उल्ला खान और महात्मा गांधी की तस्वीरें लगी हैं। कई वॉलंटियर्स जिसमें युवक-युवतियां दोनों शामिल है, वो तेजी से सारी व्यवस्थाएं संभाल रहे है। यहां अलग-अलग वक्ताओं का लगातार आना जाना जारी रहता है।
बिना कोई जाच पड़ताल के यहां की महिलाओ पर 500 रुपए लेकर शाहीन बाग में धरने पर बैठने के आरोप लगाएं जा रहे हैं। यहाँ एक ही बात कहनी चाहिए जो 500 रुपए वाली भीड़ होती है वो टैंपो में आती है और टैंपो में लदकर चली जाती है। जो लोग 500 रुपए की बात करते हैं तो ये लोग इन महिलाओं की तौहीन कर रहे हैं। जिन बहनों ने अपनी सारी जिंदगी पर्दे के पीछे निकाल दी। अपने पैर का नाखून तक किसी को देखने नहीं दिया, आज उन्हें अगर यहां आकर बैठना पड़ रहा है तो आप समझिए ये कितनी बड़ी कुर्बानी है इन बहनों की।
शाहीन बाग अगर भाड़े पर लाए गए लोगों का आंदोलन होता तो आज वहाँ कश्मीरी पंडितों के विस्थापन पर चर्चा नहीं होती। ये पोस्टर बता रहा है कि शाहीन बाग़ का आंदोलन क्यों 35 दिनों बाद भी सभी को चुनौती दे रहा है। शाहीन बाग़ इतिहास बना रहा है। कश्मीरी पंडितों के साथ हुई नाइंसाफ़ी के प्रति सद्भावना का इज़हार कियाजा रहा है।
बाहर से भारी मात्रा में आ रहे खाने ने शाहीन बाग धरने की व्यवस्था संभाल रहे वॉलंटियर्स को भी मुश्किल में डाल दिया है। दरअसल, यहां लोग खुद से ही अपनी-अपनी गाड़ियों में खाना लेकर पहुंच रहे हैं। इनकी आमद इतनी ज्यादा है कि खुद आयोजक भी परेशान हैं। लेकिन गौर करने वाली बात है कि मुख्य पंडाल से खाने की ओर आते कम लोग ही नजर आते हैं, लेकिन जो लोग बाहर से आते हैं या फिर आसपास से जो जुटे हैं, वो खाना लेते नजर आते हैं। खाने को लेकर हो रही चर्चा के चलते आयोजकों ने माइक से ऐलान किया कि कोई भी वॉलंटियर जो वहां का लोकल है और घर से खाना ला सकता है, वह यहां खाना न ले। खुद ऐलान करने वालों ने वहां मंगाया गया खाना न खाने का ऐलान किया। ये बात भी शाहीन बाग़ की अनोखी और काबिले तारीफ़ हैं।
यहां सिख समाज द्वारा लगाया गया लंगर भी देखा जा सकता है जो धरनास्थल से कुछ ही दूरी पर एक शामियाना में है।
मुख्य मंच - शाहीन बाग के दो हिस्से हैं- एक जो वहां मौजूद हैं, लेकिन मुख्य पंडाल में नहीं है लोग लगातार आ-जा रहे होते हैं या फिर कुछ दूर खड़े होकर सुन रहे होते हैं। दूसरे वो जो मुख्य पंडाल में हैं और किसी भी तरह की बाहरी गतिविधि से दूर होकर सिर्फ और सिर्फ वक्ताओं को सुन रहे होते हैं। वो, दरअसल वहां पंडाल में बठी सैकड़ों महिलाएं है। इस दौरान कई वक्ताओं ने अपनी बात रखी लेकिन बीते दिन हुई कुछ आलोचनाओं से परेशान व्यवस्थापकों ने मंच से साफ किया कि उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल के नेता को कभी भी आमंत्रित नहीं किया हैं। अब वो क्या कर सकते हैं कि उसके बावजूद कुछ नेता मंच पर पहुंच जाते हैं। मंच पर ऐसा भी देखने को मिला कि जो वक्ता थोड़ा भी संयम खोते दिखे है उन्हें जल्द अपना भाषण खत्म करने को कहा गया है।
देर रात तक बुर्का पहने महिलाओं का तेजी से धरनास्थल की ओर आना जारी रहता है। जैसे वो खामोश रास्तों को भी बताने प्रयास कर रही हैं की हमें ना रुकना हैं, और ना झुकना हैं। सोचने वाले कुछ भी सोचे हमें बस अपना अधिकार लेना है।
दूसरी तरफ स्टैनफ़ोर्ड
यूनिवर्सिटी से भी शाहीन बाग़ के नाम पैगाम सलाम आया है
वैसे तो भक्त प्रिये
मीडिया और दो लाइन लिख न सकने वाले नेता जे एन यू को भी लेक्चर देने लगे थे कि छात्रों
को पढ़ना चाहिए और राजनीति नहीं करनी चाहिए। जिनकी खुद की डिग्री और पी एच डी पर कई
सवाल उठते हैं। जे एन यू को बंद करने की बात करते हैं। क्या वो स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी
को भी लेक्चर देना चाहेंगे? कि पढ़ो? राजनीति मत करो ? या स्टैनफ़ोर्ड को बंद कर देना
चाहिए? वहाँ के भारतीय और ग़ैर भारतीय छात्रों और शिक्षकों ने शाहीन बाग़ के समर्थन
में आज प्रदर्शन किया। शाहीन बाग़ को सलाम भेजा है। पोस्टर और बैनर पर लिखे नारों को
ध्यान से पढ़िए। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, जामिया मिलिया और जे एन यू में हुई पुलिस
की हिंसा और गुंडागर्दी की घोर निंदा की है।
इन तस्वीरों को देखिए।
इनमें से कोई भी पाँच सौ रुपये देकर नहीं लाया गया होगा। शाहीन बाग़ पर इतना छोटा आरोप
लगाने वालों को भी समझिए। एक महीना से ज़्यादा हो गया लेकिन खोजने पर भी कुछ नहीं मिला।
स्टैनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी दुनिया की बड़ी यूनिवर्सिटी मानी जाती है।
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