Ex-RBI Governor Raghuram Rajan ने अपने ब्लॉग मे JNU की घटना और लोकतंत्र पर अहम टिप्पणी की है जिसका शीर्षक है 'नए दशक का संकल्प '
पिछले कुछ दिनों से भारत से आ रही खबरें गंभीर है। भारत की सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी में से एक JNU (जेएनयू) में नकापोश गुंडों का एक गैंग एंट्री करता हैं। घंटों तक तबाही मचाता है। छात्रों और फैकल्टी पर हमला करता है और पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगती। हमलावारों की पहचान अभी तक साफ नहीं हुई है ये जरूर साफ है जिन पर हमला हुआ, उनमें से कई एक्टिविस्ट थे। लेकिन न तो सरकार और न ही पुलिस ने इसमें हस्तक्षेप किया। ये सब देश की राजधानी में हुआ है जहाँ हर कोई हाई अलर्ट पर होता है। जब देश के सर्वोच्च विश्वविद्यालय युद्ध के मैदान बन जाए तब सरकार पर विरोध को दबाने की कोशिश करने के आरोप लगते है।
नेतृत्व पर लांछन लगाना बहुत आसान है लेकिन हम जैसे महान और ऐतिहासिक लोकतंत्र में हमारी, यानी कि आम जनता की भी जवाबदेही है। नागरिकों ने ही नेताओं को जिम्मेदारी दी है और उनकी विभाजनकारी एजेंडे को चुपचाप मान लिया है। उन्होंने हमारी चुप्पी को अपना आदेश मान लिया, हम में से कई लोग इस उम्मीद में थे कि वे आर्थिक मोर्चे पर ध्यान देंगे। हममें से कई उनके भाषण से सहमत भी हुए। जिसने हमारे अपने पूर्वाग्रहों को और खतरनाक बना दिया। हममें से कई लोगों को कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्हें लगा कि राजनीति किसी और की समस्या है। हममें से कुछ आलोचना से डरें क्योंकि आलोचना करने वालों के साथ जो हुआ वो उदाहरण बन गया। लोकतंत्र सिर्फ एक अधिकार नहीं है, बल्कि एक जिम्मेदारी भी है। हमारे गणतंत्र को सुरक्षित रखने का दायित्व सिर्फ चुनाव के दिन नहीं बल्कि हर एक दिन, सौभाग्य से, भारत से आ रही खबरे उत्साहजनक भी रही है। जब अलग-अलग पंथों के युवा साथ में मार्च करे, हिंदू-मुस्लिम कंधे से कंधा मिलाकर तिरंगे के पीछे चले, राजनेताओं द्वारा अपने फायदे के लिए बनाए गए मतभेदों को नकारते हुए। तब वे बताते हैं कि हमारे संविधान की आत्मा अभी भी जिंदा हैं। जब प्रशासनिक सेवा के अफ़सर इसलिए अपनी ड्रीम जॉब छोड़ दे क्योंकि उन्हें लगा कि वह ईमानदारी से अपना काम नहीं कर पाएंगे, तो वो आजादी के लिए दान देने वाले हमारे पूर्वजों की याद दिलाते हैं। जब एक चुनाव आयुक्त अपनी फैमिली के साथ हो रही उत्पीड़न के बावजूद निरपेक्ष होकर अपने कर्तव्यों का निर्वाह करे, तब यह धारणा मजबूत होती है कि ईमानदारी और सत्यनिष्ठा अभी खत्म नहीं हुई है। जब मीडिया के कुछ लोग अपने साथियों के सरकार के सामने झुकने के बाद भी, सच को सामने लाने के लिए काम करते हैं तो वे गणतंत्र के जिम्मेदार नागरिक का मतलब समझते है और जब एक बॉलीवुड अभिनेत्री अपनी आने वाली फ़िल्म के रिस्क होने के बावजूद जेएनयू (JNU) में अटैक पीड़ितों से मिलकर अपना साइलेंट प्रोटेस्ट दर्ज कराती है तो वो हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करते हैं कि क्या कुछ दांव पर लगा हुआ है। इन बातों से प्रभावित न होने के लिए कुटिल होना जरूरी है इन लोगों ने अपने काम से बताया कि सत्य, आजादी और न्याय सिर्फ बड़े शब्द नहीं है बल्कि आदर्शों के लिए बलिदान जरूरी है। वो उस भारत के लिए आज लड़ रहे हैं जिसके लिए महात्मा गाँधी ने अपनी जान दी थी। वो आजादी के लिए तब मार्च नहीं कर पाए लेकिन आज उसे बचाने के लिए कदम से कदम मिलाकर चल रहे है। वो रविंद्रनाथ टैगोर के सपनों के देश को सच में बदलने की कोशिश कर रहे हैं।
26 जनवरी को 70 साल हो जाएंगे, जब देश में आदर्शों और उदारता से भरे संविधान को अपनाया था। हमारा संविधान परफेक्ट नहीं था। लेकिन यह पढ़े लिखे
पुरुष और महिलाओं के द्वारा बनाया गया था जिन्होंने विभाजन की भयावहता देखकर और भी
एकजुट भविष्य बनाने का प्रण लिया था। वो समझते थे कि देश कहीं बेहतर पाने के लिए सक्षम
था। लेकिन कुछ आत्मघाती ताकतें भी बाहर आ सकती है, इसलिए उन्होंने ऐसा ड्राफ्ट तैयार
किया जो हमारे अन्दर साझा लक्ष्य और गर्व की भावना जगाए रखें। नए दशक में हमारे भीतर
साहस बरकरार रहें, इससे बेहतर संकल्प क्या ही होगा? आइए, हम भारत को सहनशीलता और विनम्रता
का चमकदार उदाहरण बनाने के साथ मिलकर काम करें, जिसकी कल्पना हमारे पुरखों ने की थी,
थकी हुई दुनिया में मशाल की तरह नए दशक में यह हमारा कर्तव्य होगा
तो ये था रघुराम राजन का ब्लॉग (BLOG)
जिसमे जेएनयू (जनु) का जिक्र करते हुए उन्होंने इसमें कई अहम बातें कही है|
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