क्या बीजेपी नेताओ की भाषा अभद्र हो गई जो सुनने में कोई गाली लगती है?
नागरिकता समर्थक रैलियों में ‘गोली मारो सालों को’ के नारे आफिशियल हो चुके हैं। बीजेपी के मंत्री और नेता भी उसी ज़ुबान को बोलने लगे हैं। गैंग गैंग का झूठ फैलाते फैलाते सच में गैंग की भाषा बोलने लगे है। प्रधानमंत्री मोदी की सबसे बड़ी देन यही राजनीतिक संस्कृति है। उन्होंने भी ऐसे लोगों को फोलो किया जो आई टी सेल की भाषा बोल रहे थे। 2014 के बाद पहले आई टी सेल के ज़रिए राजनीतिक भाषा में माँ बहन की गालियों को लिखित और औपचारिक हथियार बनाया गया। अब नेताओं की ज़ुबान वही औपचारिक भाषा बोलने लगी है। किसी को अध्ययन करना चाहिए कि इस दौरान गांधी की मीम के साथ किस तरह गालियों का मुज़ाहिरा किया गया है। बस जल्दी ही ये गालियों अब समर्थकों के घरों में बोली जाएंगी। ऐसा तो हो नहीं सकता जिसे आप लिख रहे हैं, बाहर बोल रहे हैं वो एक दिन घर से नहीं निकलेगा। मोदी और बीजेपी समर्थकों के दम पर ही तो ये नेता इस तरह की ज़ुबान चला रहे हैं। पता है कि समर्थक भी कुछ नहीं कहेंगे और बड़े नेता भी चुप रहेंगे। यह बात समझने की है कि आख़िर कौन सी ऐसी कमी जनता ने कर दी कि मंत्री या नेता या कार्यकर्ता उसी जनता को गोली मारने की, कुत्तों की तरह गोली मारने की और मार कर दफ़ना देने की बात करते हैं ?
- रविश की रपट से
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