Tuesday, 24 March 2020

अभी अपने घर में ही रहो....

तूफ़ान के हालात है ना किसी सफर में रहो...
पंछियों से है गुज़ारिश अपने घर में रहो...

ईद के चाँद हो अपने ही घरवालो के लिए...
ये उनकी खुशकिस्मती है उनकी नज़र में रहो...

माना बंजारों की तरह घूमे हो डगर डगर...
वक़्त का तक़ाज़ा है अपने ही घर में रहो...

तुम ने खाक़ छानी है हर गली चौबारे की...
थोड़े दिन की तो बात है अपने घर में रहो...

माना कि एजेंट हो बहुत काम है तुम्हें
फिर जोर शोर से लगेंगे, अभी सेफ तो रहो...

घर परिवार सुरक्षा आज सिर्फ अपने की
ओरो के लिए करंगे- लगेंगे , अगर  जिंदगी रही...

घर मे रहे- सुरक्षित रहें
धन्यवाद...

Tuesday, 3 March 2020

SECTION 505 - STATEMENT CONDUCTING PUBLIC MISCHIEF



जज क्यों फांसी की सजा के बाद पेन की निब तोड़ देते हैं ?

फांसी की सजा उन्हें  सुनाई जाती है जिन्होंने जघन्य अपराधों किये होते है। किसी अपराधी को जब फांसी की सजा मिल जाती है तो कोर्ट में बैठे जज पेन की निब तोड़ देते हैं, क्या आप जानते हैं आखिर ऐसा क्यों किया जाता है और इसके पीछे क्या कारण या वजह है? भारतीय कानून में सबसे बड़ी सजा फांसी की होती है और भारतीय कानून में फांसी की सजा को जघन्य अपराधों की श्रेणी में रखा है। जज फांसी की सजा सुनाने के बाद इसलिए पेन की निब इस आशा के साथ तोड़ देते हैं ताकि ऐसा जघन्य अपराध दोबारा न हो। बता दें, जब किसी अपराधी को फांसी की सजा सुनाई जाती है तो उसके बाद उस फैसले पर हस्ताक्षर करना होता है। हस्ताक्षर करने के बाद उस पैन की निब तोड़ दी जाती है जिससे उस अपराधी की मौत लिखी है। वहीं फांसी की सजा सुनाने के बाद पैन की निब इसलिए भी तोड़ी जाती है ताकि जिस पैन ने अपराधी की मौत लिखी है वह किसी और काम के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सके। 'Death Sentence' किसी भी जघन्य अपराध के मुकदमों के लिए समझौते का अंतिम निर्णीय होता है, जिसे किसी भी अन्य प्रक्रिया द्वारा बदला नहीं जा सकता। जब फैसले में पेन से “Death” लिख दिया जाता है, तो इसी क्रम में पेन की निब को तोड़ दिया जाता है, ताकि इंसान के साथ-साथ पेन की भी मौत हो जाए। जब पेन से “Death” लिख दिया जाता है उसके बाद निब तोड़ दिये जाने के बाद खुद जज को भी यह यह अधिकार नहीं होता कि उस जजमेंट की समीक्षा कर सके या उस फैसले को पुनर्विचार या बदलने की कोशिश कर सके। वो फैसला अंतिम माना जाता है। बता दें, फांसी की सजा हमेशा रात के वक्त दी जाती है। वहीं फांसी देने वाला जल्लाद फांसी देने से पहले अपराधी के कान में बोलता है'- “हिंदुओं को राम-राम और मुस्लिमों को सलाम। मै अपने फर्ज के आगे मजबूर हूं।

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